शनिवार, 23 अगस्त 2014

मैं मैं करता मैं मरा ,सब कुछ यहाँ समाय |
मैं मारा..मन को जरा , तुझ में गया विलाय ||(१)

मेरा मुझको चाहिए , हक़ में जितना आय |
कायर सा भी क्या जियूँ ,हक़ अपना मरवाय ||(2)

-------------------अलका गुप्ता-------------------

अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...

अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...: कहा ..यूँ .. उस.. संगतराश से.. मरमरी... उन पत्थरों ने|| चाहें ..कितनी ही... हथौड़ी ..या.. छेनी... तू चला || घाव जो.. रिसने लगें ... हर आह ! ...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ... : हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते...

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