शनिवार, 3 मई 2014

पत्थरों ने.....यूँ कहा

कहा ..यूँ ..
उस.. संगतराश से..
मरमरी... उन पत्थरों ने||

चाहें ..कितनी ही...
हथौड़ी ..या.. छेनी...
तू चला ||

घाव जो..
रिसने लगें ...
हर आह ! पे ...
गीत उगने लगें ||

शेर कहने की तमन्ना...
पत्थरों के दिल में हैं ||

आज वह ...
दर्द-ए-ग़जल में...
पिघलने लगें ||

---------अलका गुप्ता ----------

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