रविवार, 23 मार्च 2014

चले थे इसी जुस्तजू में |
कोई किनारा ना मिला ||

इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||

डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||

हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||

तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||

मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||

जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||

-----------अलका गुप्ता ----------