सोमवार, 13 जनवरी 2014



चहकी न अब तक मधुशाला |
बहकी-बहकी चितवन बाला |
दहकी ना क्यूँ मन की ज्वाला |
भर दे तू साकी ! आज पियाला ||

जाम भी या क़दह भर जाएंगे |
डग-मग से कदम बहकाएंगे |
यहाँ - कभी - वहाँ गिर जाएँगे |
हालात वहके से नजर ना आएँगे ||

ये हाला है....कि इक ज्वाला है |
घर यूँ ही बेवजह जल जाएंगे |
होश गुम हो जाएँगे किसी के ....
जाम से जाम जब टकराएंगे ||

भरकर चषक...अरमान पी जाएंगे |
भूले रिश्ते...पान-पात्र से पी जाएंगे |
देखे हैं भूखे पेट या ये हैवान नशे में...
जद में घर जो श्मशान सा डराएंगे ||

ये चषक हैं मय के.....या चूषक |
मासूम रिश्ते-नातों के अवशोषक |
लुटती अस्मत उस मदहोशी के वश |
विस्मृती वश इंसान बने मात्र भक्षक ||

समझ ना पाऊं तेरा ये पीना और पिलाना |
अनियंत्रित भाषा वेश तेरा तू शराबी माना |
पेंदी बिन लोटे सा लुढका-लुढका घूम रहा |
इंसां रहे ना इंसां,तू पात्र हँसी का बेगाना ||

भूल जा गाना तू मधुशाला का बस |
सुनने में ही सुन्दर लगता है... बस |
ढलने में सबको ही... छलता है बस |
चषक पियाला पान-पात्र जाम क़दह..
जीवन से तू फेंक बाहर बहुत दूर बस ||

----------------अलका गुप्ता ----------------

गुरुवार, 2 जनवरी 2014




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जीवन के दिन......... ऐसे बीतें........जैसे दिखें गुलाब |
नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ रहें सदा आपके साथ ||
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आज मेरी एक बहुत ही पुरानी रचना आपके सम्मुख है ---

"उदास मैं !...उदास राहें चली "|
उजड़ी ..एक बगिया ..मिली |
मगर .....नहीं !
कली एक खिली मिली ...|
मुस्काती खिलखिलाती ...वह |
मैं ..उसके.. भाग्य से जली ||

पूँछा- ऐ अधखिली ..खिली कली !
दुःख ..क्या ..नहीं ....तुझे कोई ?
बोली वह - मुस्काती...इठलाती |
''मेरी बहना ....प्यारी -प्यारी !''
ढूंडती मैं ...दुखों में सुखों की लड़ी !
मारुति की ..मार से.... मैं झूमती !
छोडती न विश्व को ...|
शीत के आँसू जोडती ...|
ऋतुओं की हूँ ...अरविन्द मैं !
भौंरा है ..कितना ...मक्कार !
जानते यह ...सभी ...|
मगर ....नहीं..|
''मेरा तो...... जीवन सार वही !!"

अभी वह ...और कहती ...|
अभी वह ...और कहती ...|
मैं !...उसके भाग्य से जली |
तोड़ा ...झटके से ...!
अब ......... सूनी थी डाली !
मैं !...कुटिलता से हँसी !!

आया झोंका ...तेज वयार का |
टूटकर बिखर गई ....वह कली !
फिर से ...मैं !....हँस उठी |
तभी ...बिखरी पत्तियाँ चीख उठीं |
''देख ..!!!...क्या बिखरने से मेरे !
धरती ...!....नहीं सज उठी "|
मेरे लिए... फिर.... वही दास्तान |
"उदास मैं !....उदास राहें चलीं "||

---------------अलका गुप्ता----------------

नव वर्ष है

नव वर्ष है !
नव संचार सब !
नव गीत हों !

फिर प्रसार ...
कृपा अपरम्पार ...
ईश दे साथ ...

हों दूर विघ्न !
खुलें उन्नति द्वार !
भरे उल्लास !

हर्षित होवें !
धन धन्य से पूर्ण !
ले सद्विचार !

------------अलका गुप्ता ---------------