मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

तस्वीर कुछ कहती है ..........

खाने की है आरजू..आज भी ...पेट भर |
देख लेता हूँ दूर से ही खिलौने आँख भर |
बंदिशे मुफिलिसी की उठाने भी नहीं देतीं ...
बोझ किताबों और खिलौने का ..काँधे पर ||

--------------अलका गुप्ता ------------------

रविवार, 22 दिसंबर 2013

ये हमारा दिल है... कोई... खेल खिलौना नहीं |
चाहा..जब खेल लिया ...या कोई तवज्जो नहीं | 
हाड़ मांस का पुतला हूँ...दिल भी है.. धड़कता ..
इच्छाएं हैं उमंगें भी.. इतना भी..तू..जाने नहीं ||

------------------अलका गुप्ता ---------------------

अलका भारती

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साँझ ..सपनों सी सजा गया कोई |
भीगे अहसासों में भिगा गया कोई |
बेगाने ...हुए जाते हैं अरमान क्यूँ ...
पैमाना मदहोश छलका गया कोई ||

-------------अलका गुप्ता--------------

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

डरो बेशक ..मगर उसके 
सम्मान के हरण में ...
करो ना सम्मान बेशक ..
एक इंसान तो समझो |

वरना हर पल वह ...
अपने होने से ...
देती सबको ही...
सुकून है |

व्यक्तित्व है वह भी...एक
जीवन में उसके भी...
होते हैंअरमान...अनेक |

माँ बेटी बहन पत्नी !
तमाम रिश्तों में ही वह ....
बता दो !...किस पल
साथ नहीं सबके ...
वह होती है |

रहस्यमयी वह हरगिज नहीं !
बस जिज्ञासाओं की...
नियत तेरी !...
हद से पार ...
झिंझोड़ने की होती है !

वरना वह तो ...
स्नेह प्यार दुलार ...
और त्याग की...
मूरत होती है |
पहले सबसे माँ सी ...
उसकी सूरत होती है ||

-------------अलका गुप्ता ---------------

............ताली .............

सन्मार्ग के हम ...पथिक हों |
प्रेम पथ का सदा विस्तार हो |
हों ..छल कपट से दूर सभी ..
कुंजी..सत्कर्म भी ..साथ हो ||

संस्कार का..न कभी ..भी ह्रास हो |
सम्मान में दूजे के भी ....मान हो |
भ्रष्ट ना कोई भी... यहाँ इंसान हो |
उत्कृष्ट चाभी ..सदा यही.. साथ हो ||

कदमों का ..बढ़ते हुए सब साथ हो |
निज स्वार्थ कर्म का ..परित्याग हो |
सत्कर्म और कर्तव्य में सौभाग्य हो |
मिलाएं हाथ इस ताली से विस्तार हो ||

-----------------अलका गुप्ता ---------------

दिए गए चित्र पर भाव-अभिव्यक्ति...आपके समक्ष मित्रों !!! 

इस करीने से ...सजा है क्या ..?
नाम तक मैं जानना चाहता नहीं !

भोग कहीं ...छप्पन तो नहीं !
मर रहा भूख से बेहाल कहीं !
ख्वाब भी ...हसीन है..जो ...
नसीब हुई रोटी भी सूखी कहीं !!

चढ़ रहे... मंदिरों में भोग हैं |
रुल रहे रस रसीले संजोग हैं |
ठाठ बाट में हैं देव पाषाण वहीँ ..
भूखा मरे कोई अजब संजोग हैं ||

चादरें चढती ..रहीं मजारों पर
इंसानियत के ..उन निशानों पर
मर गया कोई वहीँ ...नग्न ही ...
ठंडी सी ...पथरीली उन्हीं राहों पर ||

ख़्वाब भी देखा नहीं था भरी थाली का कभी |
रुखा -सूखा ही बहुत हुआ मिल जाए जो कभी |
यहीं कहीं फुटपाथ पे ...जिन्दगी यूँ ही कटती रही...
सोया भी सुकून से बेशक !तन पे कपड़ा न हो कभी ||

देखना क्या ..उस भरी थाली को ..
जों अपने नसीब में तो हरगिज नहीं !
इस करीने से... सजा है वह ..क्या ..?
नाम तक वह ..जानना चाहता नहीं !!


--------------------------अलका गुप्ता ----------------------------

रविवार, 1 दिसंबर 2013

जिन्दगी


-----जिन्दगी----

दर्दे सैलाब में डुबकियाँ लगाती रही जिन्दगी |

नश्तर कभी काँटे भी ...चुभाती रही जिन्दगी |
हँसती रही...जिन्दगी..उड़ा कर हँसी बेशर्म सी...
रौशनी सी दिखी...कभी जलाती रही जिन्दगी ||

-----------------अलका गुप्ता -------------------