गुरुवार, 5 सितंबर 2013

बढ़ चले कदम यूँ ही वीरानों की तरफ |
खो रही थीं राहें अंधेरों में ....हर तरफ ||

डराते रहे साए से हादसों के फलसफे ...
बेबस सी खौफ में डूबी रही इक तडफ || 

बरगलाते हैं स्याह ये ...शैतानी आगाज़ |
मचाते रहे कत्ले आम बेरहम हर तरफ ||

बचा कर... इंसानियत को ...ऐ खुदा !
दिखा दे किरन..आस की.. हर तरफ ||

आवाद कर... 'अलका ' ... इक हौसला |
चेहरा.. अमन का ..मुस्करा दे हर तरफ ||

----------------अलका गुप्ता ----------------

घायल मन अनंग .. नयनन हिं सों .. खेलन लगे रास |
मुक्त हुए तीक्ष्ण वाणों से बंधन ये .. लाज गुंफन फांस | 
रचने लगे तप्त अधरों से यक्ष-यक्षिणी गीत बुन्देली राग ..
अमर हुए पर्व वो..आलिंगन विस्मृति से भीगे इतिहास ||

----------------------अलका गुप्ता -------------------------